Thursday, March 3, 2016

An Iconic Bungalow : एक याद का यूँ मिट जाना

 कहने को हमारी सभ्यता पांच हजार साल पुरानी है परन्तु अतीत के कई स्मृति चिन्हों को हम सहेज नहीं पाये , यह सिद्ध हो चूका है। हमारी लापरवाही का आलम यह है कि महज चार सौ बरस पहले बना ताजमहल अपना दूधिया रंग छोड़ पीला होने लगा है। दो हजार साल पुरानी सम्राट अशोक की शिला अगर जंग रहित है तो यह उस समय की दूरंदेशी का परिणाम है , इसमें हमारा कोई योगदान नहीं है।
                         प्रसिद्ध लोगो से जुडी वस्तुओ और स्मारकों को संरक्षित करना अगर सीखना हो तो हमें बगैर शर्म किये पश्चिम की और  देखना चाहिए।  अमेरिका में म्यूजियम कल्चर किस कदर आम जीवन में पैठ बना चुकी है उसका अंदाजा sothby या christi जैसी बड़ी नीलाम संस्थाओ में जुटने वाली भीड़ से लगाया जा सकता है।  किसी फिल्म स्टार के नेपकिन या पुरानी कार के लिए लोग लाखों डॉलर खर्च देते है। यही इकलौता देश है जहां सरकारी संग्रहालयों से ज्यादा व्यक्तिगत संग्रहालय है। मास्को में एक रेलवे प्लेटफार्म की घडी की सुइयां  आज भी उस समय पर रुकी हुई जिस   समय महान लेखक लियो टॉलस्टॉय का निधन हुआ था। जर्मनी ने हिटलर के नरसंहार  दौर की एक एक कील को भी संभाल रखा है।
हम न तो बापू का   चश्मा संभाल पाये  न ही टीपू सुलतान की चीजे।  इस लेख का सिर्फ   उद्देश्य यह  बताना है कि भारत अपने  पहले सुपर स्टार की धरोहर को भी नहीं सहेज पाया है। सत्तर के दशक ने राजेश खन्ना को लोकप्रियता की उस मुकाम पर देखा था जो बिरलो को ही नसीब हुई है। उनका बंगला '' आशीर्वाद '' उन्ही की तरह प्रसिद्ध  था। राजेश खन्ना स्वयं चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उसे संग्राहलय बना दिया जाए।  अफ़सोस यह हो न सका।  इस बंगले के नए मालिक ने इसे ध्वस्त कर बहुमंजिला बिल्डिंग बनाने का निर्णय लिया है।
राजेश खन्ना की तरह उनका बंगला भी अब  सिने प्रेमियों की यादों में शुमार रहेगा !!

1 comment:

  1. आपकी पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

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